हिंदू धर्म में एकादशी का काफी महत्त्व है. एकादशी तिथि भगवान विष्णु को समर्पित होती है. इस दिन भगवान विष्णु के निमित्त व्रत और पूजा पाठ करने पर सभी मनोकामनाएं बिना मांगे ही पूर हो जाती हैं. साल में 24 एकादशी तिथि का आगमन होता है. एकादशी का व्रत करने से जीवन में चल रही सभी समस्याएं और बाधाएं खत्म हो जाती हैं. सभी एकादशियों का अपना अलग-अलग महत्त्व है. ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की निर्जला एकादशी का व्रत करने से सभी एकादशियों का फल प्राप्त होता है. पौराणिक कथा के अनुसार, निर्जला एकादशी माता कुंती और पांडवों से जुड़ी हुई है.

कुंती और भीम से कनेक्शन

पंडित श्रीधर शास्त्री बताते हैं कि ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष में निर्जला एकादशी का व्रत किया जाता है. सभी एकादशी तिथि के दिन विष्णु भगवान की पूजा अर्चना, आराधना, स्त्रोत और व्रत आदि करने पर मोक्ष की प्राप्ति होती है. इस एकादशी का महत्त्व महाभारत से जुड़ा हुआ है. माता कुंती साल में होने वाली सभी एकादशियों का व्रत विधि विधान से करती थीं. भीम अपनी भूख पर नियंत्रण न रखने के कारण कोई भी व्रत नहीं कर पाते. इसका समाधान जानने के लिए भीम ने महर्षि वेदव्यास के सामने अपनी समस्या रखी. वेदव्यास ने कहा कि ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष में निर्जला एकादशी का आगमन होता है. यदि इस एकादशी का व्रत किया जाए तो सभी 24 एकादशी का फल प्राप्त होता है. भीम ने पहली बार निर्जला एकादशी का व्रत किया, जिस कारण उन पर विष्णु भगवान की कृपा सदैव बनी.


सबसे कठिन व्रत

निर्जला एकादशी का व्रत विधि विधान से करने पर सभी एकादशियों का फल प्राप्त होता है और विष्णु भगवान की कृपा सदैव बनी रहती है. निर्जला एकादशी का व्रत सबसे कठिन और विशेष फल प्रदान करने वाला होता है. इस दिन सबसे पहले ब्रह्म मुहूर्त में उठकर व्रत का संकल्प करके स्नान आदि करते हैं. पूरे दिन बिना खाए पिए रहकर विष्णु भगवान की पूजा पाठ, आराधना और महा फलदायक मंत्र “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” का 108 या अपनी सामर्थ्य के अनुसार जाप करने पर सभी समस्याएं खत्म हो जाती हैं. साल 2025 में निर्जला एकादशी का व्रत 6 और 7 जून को किया जाएगा, जिसमें गृहस्थ जीवन में रहने वाले साधक 6 जून और साधु संत 7 जून को निर्जला एकादशी का व्रत करके पुण्य अर्जित कर सकते हैं.